‼️ एक शख्स ने अपनी मस्जिद के पेश इमाम से कहा: मौलाना में कल से मस्जिद नहीं आऊंगा,
पेश इमाम साहब ने पूछा: क्या में सबब जान सकता हूं ?
उस ने जवाब दिया: हा क्यों नहीं! दर असल वजह ये है के जब भी मैं मस्जिद आता हूं तो देखता हूं के कोई फोन पर बात कर रहा है, तो कोई दुआ पढ़ते वक़्त भी अपने मैसेज देख रहा होता है, कहीं कोने में गीबत हो रही होती है, तो कोई मोहल्ले की खबरों पर तब्सिरा कर रहा होता है, वगैरह वगैरह__
‼️ पेश इमाम साहब ने वजह सुनने के बाद कहा: अगर हो सके तो मस्जिद न आने का अपना आखिरी फ़ैसला करने से पहले एक अमल कर लीजिए!!
उस ने कहा: बिल्कुल में तैयार हूं,
‼️ मौलाना मस्जिद से लगे हुए अपने हुजरे में गये और एक गिलास पानी ले कर आये और उस शख्स से कहा ये गिलास हाथ में लो और मस्जिद के अंदरुनी हिस्सा का दो चक्कर लगाये मगर ध्यान रहे पानी छलकने ना पाए!
‼️ उस शख्स ने कहा: किब्ला! इस में कौन सी बड़ी बात है ये तो में अंजाम दे सकता हूं,
उस ने गिलास लिया और पूरी एहतियात से मस्जिद के गिर्द दो चक्कर लगा डाले, मौलाना के पास वापिस आकर खुशी से बताया के एक कतरा भी पानी नहीं छलका,
‼️ पेश इमाम साहब ने कहा: ये बताये जिस वक़्त आप मस्जिद का चक्कर लगा रहे थे उस दौरान मस्जिद में कितने लोग फोन पर बाते या गीबत या मोहल्ले की खबरों पर तब्सिरा कर रहे थे??
‼️ उस ने कहा: कीब्ला मेरा सारा ध्यान इस पर था के पानी छलकने ना पाए, मैंने लोगों पर ध्यान ही नहीं दिया,
‼️ पेश इमाम साहब ने कहा: जब आप मस्जिद आते है तो अपना सारा ध्यान "खुदा" की सिम्त रखें, जब आप ख़ालिस *खुदा के लिये* मस्जिद में आयेंगे तो आप को खबर ही ना होगी कौन क्या कर रहा है,
यही वजह है के क़ुरआन कहता है के "रसूल की पैरवी करो" ये नहीं कहा के मुसलमानों पर नज़र रखो के कौन क्या कर रहा है,
‼️ खुदा से तुम्हारा राब्ता तुम्हारे अपने अामाल की बिना पर मजबूत होता है दूसरों के आमाल की बुनियाद पर नहीं,
‼️ क़ुरआन ए करीम: और सब को कयामत के दिन अकेले ही आना है।
✒️ सुरह मरियम आयत 95