लड़कियों के नग्न घूमने पर जो लोग या स्त्रीयां ये कहते है की #कपड़े नहीं सोच बदलो....
उन लोगो से मेरे कुछ प्रश्न है???
1)हम #सोच क्यों बदले?? सोच बदलने की नौबत आखिर आ ही क्यों रही है??? आपने लोगो की सोच का #ठेका लिया है क्या??
2) आप उन लड़कियो की सोच का #आकलन क्यों नहीं करते?? उसने क्या सोचकर ऐसे कपड़े पहने की उसके स्तन पीठ जांघे इत्यादि सब दिखाई दे रहा है....इन कपड़ो के पीछे उसकी सोच क्या थी?? एक #निर्लज्ज लड़की चाहती है की पूरा पुरुष समाज उसे देखे,वही एक सभ्य लड़की बिलकुल पसंद नहीं करेगी की कोई उसे देखे
3)अगर सोच बदलना ही है तो क्यों न हर बात को लेकर बदली जाए??? आपको कोई अपनी बीच वाली ऊँगली का इशारा करे तो आप उसे गलत मत मानिए......सोच बदलिये..वैसे भी ऊँगली में तो कोई बुराई नहीं होती....आपको कोई गाली बके तो उसे गाली मत मानिए...उसे प्रेम सूचक शब्द समझिये.....
हत्या ,डकैती, चोरी, बलात्कार, आतंकवाद इत्यादि सबको लेकर सोच बदली जाये...सिर्फ नग्नता को लेकर ही क्यों????
4) कुछ लड़किया कहती है कि हम क्या पहनेंगी ये हम तय करेंगे....पुरुष नहीं.....
जी बहुत अच्छी बात है.....आप ही तय करे....लेकिन हम पुरुष भी किस लड़की का सम्मान/मदद करेंगे ये भी हम तय करेंगे, स्त्रीया नहीं.... और हम किसी का सम्मान नहीं करेंगे इसका अर्थ ये नहीं कि हम उसका अपमान करेंगे
5)फिर कुछ विवेकहीन लड़किया कहती है कि हमें आज़ादी है अपनी ज़िन्दगी जीने की.....
जी बिल्कुल आज़ादी है,ऐसी आज़ादी सबको मिले, व्यक्ति को चरस गंजा ड्रग्स ब्राउन शुगर लेने की आज़ादी हो,गाय भैंस का मांस खाने की आज़ादी हो,वैश्यालय खोलने की आज़ादी हो,पोर्न फ़िल्म बनाने की आज़ादी हो... हर तरफ से व्यक्ति को आज़ादी हो।
6)लड़को को संस्कारो का पाठ पढ़ाने वाला कुंठित स्त्री समुदाय क्या इस बात का उत्तर देगा की क्या भारतीय परम्परा में ये बात शोभा देती है की एक लड़की अपने भाई या पिता के आगे अपने निजी अंगो का प्रदर्शन बेशर्मी से करे??? क्या ये लड़किया पुरुषो को भाई/पिता की नज़र से देखती है ??? जब ये खुद पुरुषो को भाई/पिता की नज़र से नहीं देखती तो फिर खुद किस अधिकार से ये कहती है की "हमें माँ/बहन की नज़र से देखो"
कौन सी माँ बहन अपने भाई बेटे के आगे नंगी होती है??? भारत में तो ऐसा कभी नहीं होता था....
सत्य ये है कीअश्लीलता को किसी भी दृष्टिकोण से सही नहीं ठहराया जा सकता। ये कम उम्र के बच्चों को यौन अपराधो की तरफ ले जाने वाली एक नशे की दूकान है।।और इसका उत्पादन स्त्री समुदाय करता है।
मष्तिष्क विज्ञान के अनुसार 4 तरह के नशो में एक नशा अश्लीलता(सेक्स) भी है।
चाणक्य ने चाणक्य सूत्र में सेक्स को सबसे बड़ा नशा और बीमारी बताया है।।
अगर ये नग्नता आधुनिकता का प्रतीक है तो फिर पूरा नग्न होकर स्त्रीया अत्याधुनिकता का परिचय क्यों नहीं देती????
गली गली और हर मोहल्ले में जिस तरह शराब की दुकान खोल देने पर बच्चों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है उसी तरह अश्लीलता समाज में यौन अपराधो को जन्म देती है।। —
एक मित्र नज़ाकत साहब ने बड़ी अच्छी बात कही
"जब हम अपना मकान बनवाते हैं तो हम ज़रूरत के तहत मकान में दरवाज़े खिड़किया रोशनदान ओपन स्पेस आदि की जगह रखते हैं। मगर हम सुरक्षा के तहत खिड़कियों, दरवाजों, रोशनदान वगैरह में लकड़ी के पल्ले, लोहे की ग्रिल भी लगाते हैं। ओपन स्पेस पर जाल लगाते हैं। खिड़कियों दरवाज़ों में सिटकनी, दंडाले आदि लगते हैं। कभी कभी तो मुख्य दरवाजे पर लोहे का चेंनल गेट भी लगवाते हैं। इतने पर ही बस नही करते बल्कि घर से काम पर जाते वक्त मज़बूत ताले भी लगाते हैं। यह एक सामान्य प्रक्रिया है जो हर व्यक्ति (महिला हो या पुरुष) मकान की सुरक्षा के लिए करता है,।
मैंने आज तक ऐसा कोई व्यक्ति नही देखा जो खिड़की, दरवाज़ों को खुला छोड़ देता हो या मकान में ताला न लगाता हो और यह विचार रखता हो कि मैं ये सब क्यों करूँ जो भी समाज मे चोरी की मानसिकता रखने वाले व्यक्ति हैं उन्हें चाहिए कि वह अपनीं मानसिकता बदले।
हम ऐसा नही करते क्योंकि हम ये नही जानते कि कौन सा व्यक्ति चोर हो सकता है और कौन सा नही हो सकता। इसलिए हम हर किसी को संदेह की परिधि में रखते हैं और अपनी और से मकान की सुरक्षा का हर सँभव प्रयास करते हैं।
यह सुरक्षा सिर्फ पेशावर चोरों से ही नही की जाती बल्कि अन्य लोगों से भी की जाती है क्योंकि हम ये भी जानते हैं कि अनुकूल अवसर देखकर पड़ोसियों, रिश्तेदारों और दोस्तों के मन मे भी चोरी करने का विचार आ सकता है।
यदि हमारे अडोस पड़ोस में किसी व्यक्ति ने कोई सम्पत्ति बगैर सुरक्षा के ही घर के बाहर या छत पर रख छोड़ी है और वह चोरी हो जाती है तो देखा गया है कि हम उसी व्यक्ति से यह कहते हैं कि वह उसीकी लापरवाही की वजह से चोरी हुई है क्योंकि उसने उसकी सुरक्षा का पर्याप्त प्रबंध नही किया था।
कुछ प्रश्न:
क्या पेशागत चोरों से ये उम्मीद करना कि वह अपनी मानसिकता बदले ठीक होगा। क्या अवसर की अनुकूलता देखकर जो भी सामान्य व्यक्ति कुछ पल के लिए चोर बन जाता है उससे यह उम्मीद रखना ठीक होगा कि वह अपनी मानसिकता बदले, हो सकता है कि ऐसे लोगों में से कुछ के मन में चोरी करने के बाद ग्लानि उत्पन्न हो जाये मागर इस ग्लानि से उस व्यक्ति को क्या लाभ जिसका समान चुराया जा चुका है। रहे मज़बूत चरित्र के लोग तो उनसे मानसिकता बदलने की उम्मीद करने का कोई औचित्य ही नही बनता।
सोचिये-
सार्वजनिक स्थामो पर क्यों लिखा रहता है, अपने सामान की रक्षा खुद करे। सावधानी हटी दुर्घटना घटी