मुस्लिम & मीडिया की कहानी जैसे फिर सर्द हुए जाते है जख्मों के यह शोले फिर हम तेरे दामन की हवा मांग रहे है कातिल से हम वफा का शिला मांग रहे हैं जैसे हाथों का लहू देकर हीना मांग रहे हैं !
बात की शुरुआत गुजरात से अगर गुजरात की जन संख्या का आंकलन करते हुए आगे बढे तो गुजरात की जन संख्या ६ करोड के करीब उसमे सरकारी आंक के अनुशार मुस्लिम आबादी ६० लाख से ऊपर अगर मानलो की प्रत्येक घर की जन संख्या ५ तो इस हिशाब से १२ लाख परिवार अब यहा बात करते है गुजरात की प्रिंट मीडिया की ज्यादातर मुस्लिम समुदाय के खिलाफ होने के बावजूद मुस्लिम समुदाय सकारात्मक अभिगम अपना ते हुए सद वर्तन कर रहा है !
इसकी एक मिशाल १२ लाख परिवारों मेसे १/४ यानी २५% यानी ३ लाख हर रोज किसीभी अखबार को खरीदते है कुछ परिवार २ या ३ अखबार भी खरीदने में सक्षमता दिखा रहे हो पर सरेराश एक माह के हिशाब से १५०.रु अब सोचिए ३ लाख परिवार खरीदार तो हुआ एक साल का हिशाब १८००×३०००००= ५४ चोहप्पन करोड रुपया फिरभी इस सदवर्तन के जवाब में प्रिंट मीडिया मुस्लिम समुदाय की छबी को नकारात्मक पेश करने को ज्यादा प्रावधान देती है. मुस्लिम समुदाय के बुद्धिजीवी समुदाय ने कभी ईसपर गौरों फिक्र की ? यह सवाल में अपने समुदाय के जिम्मेदार वर्ग से पूछ रहा हूं ?
मुस्लिम समुदाय के साथ किसीभी भी घटना को जोड देना और उस घटना से विपरीत राई का पहाड बना देना उसके बाद ऐंकर की भुमिका से हट कर वर्तमान सरकार के प्रवक्ता की भूमिका निभाते हुए न्यायाधीश बनकर जैसे टीवी के डिब्बे से चिंगारी भडकाते हुए फैसला भी सुना देना यह पिछले कुछ दशक से मीडिया का अहम किरदार बन चुका है !
दुःख की बात यह भी की सबकुछ सियादतदानो के इशारे हो रहा है भारतीय मीडिया की रेंक वल्ड के १९५ मुमालिक में १४७ वे नंबर पर है इससे भी अंदाजा लगाया जा सकता है की भारतीय मिडिया को जनता के सवालों से कोई मतलब नही बस चाटूकारिता करते हुए सुर्खिया बटोरना और टी.आर.पी बढाने के अलावा इनके पास कोई कार्य ही नही है !
मे शकील संधी अपनी कौमो मिल्लत के जिम्मेदार साथियो से यह भी सवाल करना चाहता हूं कि कभी किसी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया या प्रिंट मीडियाने इस्लाम से रिलेटेड बातों को सकारात्मकता के साथ प्रसिद्ध करते हुए कभी देखा है अब आप को तय करना चाहिए की आप किस प्रकार का अखबार पढना पसंद करते है !
एक आखरी बात को ध्यान में रखते हुए पोस्ट थोडी सी लंबी कर रहा हूं ज्यादा लंबी पोस्ट इसलिए लिखना पसंद नही करता क्योकि मेरी कॉम के युवा इग्नोर कर जाते है लंबा पढना पसंद नही करते यह भी दुःख की बात है खैर अल्लाह आसान करे अब बात करते है इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की गुजरात के १२ लाख परिवार १० लाख परिवारो के घरों में tv मौजूद हर महीने ३००.रु मिनिमम अब सोचिए सालाना ३६००.रु एक परिवार सालाना तो दश लाख परिवार का कितना ?
सोचिए ? जवाब आता है ३.६०.०००००००रु..तीस सो साठ करोड + ५४.०००००००रु...चोहप्पन करोड कुल मिलाकर ४००.००००००० रु.चारसो करोड सेभी ज्यादा एक साल में खर्च करने वाले समुदाय के पास ना ढंग का नेशनल अखबार है ना ढंग का कोई नेशनल tv चैनल है !
वजह क्या है ? आपसी तालमेल की कमी एक दुशरे को गिराने वाली गिरी हुई सोच खुद का ईगो हर एक व्यक्ति विशेष की लीडर बनने की तमन्ना यह सब कब तक क्या ? अब वक्त की मांग को लेकर अपने अंदर की सिद्दत को जगाना जरूरी है ?
यह सर्वे सिर्फ गुजरात की ६० लाख मुस्लिम समुदाय की आबादी पर किया गया है अब सोचिए २५ करोड की आबादी के सर्वे का जो आंकलन किया जाय तो मेरी सोच के मुताबिक साइंटिफिक केक्युलेटर भी हिशाब करने में फैल हो सकता है इस लिए अभी भी बक्त है जागना जरूरी है वर्ना आने वाली नश्ले हमे और आपको कभी माफ करने वाली नही है....!!
शकील संधी..!!
9924461833