जिन चरागोंने रौशनी बाटने की कसम खाई थी कभी आज वहीं आग लगाए हुए हैं..!
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शकील संधी..!
मौजूदा दौर में मुस्लिम समुदाय के लिए सबसे महत्वपूर्ण निर्णय यह लेना चाहिए की समुदाय की दशा एवम दिशा कैसे बदली जा सकती है लोगो की मदद करते हुए जीवन कैसे जीना चाहिए समय की मांग के अनुशार जीवन को जिंदा लाश नही जीवंत बनाए जीवन जीने के तरीके एवम सलीके का अभाव दूर करने के लिए स्वभाव बदले समुदाय के पूंजीपति भी समुदायकी फिक्र करे माना की आप की नजर में पैसा बहुत मायने रखता होगा पर जीवन का सत्य यहभी है की पैसा सबकुछ तो नही है.
समुदायकी आज जो दुर्दशा है उसके लिए जिम्मेदार हम खुद ही है दुशरो को दोष देनेशे क्या फायदा जब हम खुद दुशरो की छांव में खडे रहना चाहते हो आज तक हमने कभी यह सोचा की हमे आर्थिक उन्नति कैसे करनी चाहिए हमारा समाज शिक्षित कैसे होगा आगे तरक्की के लिए समयकी मांग को लेकर कौनसे अवसर युवाओंको मुहैया कराने चाहिए इन सब कार्य के लिए स्कूल कॉलेज एवम यूनिवर्सिटी बनाना आवश्यक होता है.
समुदायकी सच्चाई यह है की हम जब भी कहीभी जमा हुए है बस खाने के लिए ही जमा हुए हैं मतलब जिस्म की गीजा के लिए प्लानिंग पर रूह की गीजा का कोई प्लानिंग नही नाही समाजको इसके लिए प्रेरित करना क्योकि समाज के युवा शिक्षित होंगे तब हमारी चैरिटी के काले चिठ्ठों का हिशाब मांगेगेना इस लिए भोली भाली कॉम को भावनात्मक अफीन पिला कर सुलाया जा रहा है !
आज हमारे समुदाय के हालात यह है की हम खुदको टूटने से नही बचा पा रहे हैं हम अभी भी फिरको में इस तरह बटे हुए है इसी कारण हम बैकफुट पर दिखाई दे रहे हैं गुजरात में अपनी कयादत को मजबूत बनाकर एक मुकम्मल सामाजिक कायद होना समयकी मांग है जिससे समुदायमे राजनैतिक आर्थिक एवम सामाजिक बदलाव को आसानीसे किया जा शके क्या कभी मुस्लिम समुदायमें आर्थिक विकास के साथ साथ सामाजिक बदलाव के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम कभी चलाए गए है अगर किसी के पास जानकारी होतो मुजे साजा कराए अब हमें सबसे पहले समुदाय के बीच जाकर फिरका परस्ती नाबूद करने के लिए एक प्रॉपर प्लानिंग के साथ जमीनी स्तर पर कार्य करने होंगे पूरे समुदायको सामाजिक तौर पर संगठित करना होगा आपसी भेदभाव मिटाने के लिए प्रयास किए जाए उसके बाद हमारा मिशन मुफ्त शिक्षा मुफ्त चिकित्सा हमारे समुदाय से सुरु करना चाहिए आपसी रंजिशें हो सकती है यह मसला घर घर का है कोई नई बात नहीं है इसको अपनी इबादत गाहों एवम घर तक सीमित रखना समय की मांग है आने वाली नश्लो के बहेतर भविष्य के लिए एक प्लेटफार्म बनाना समय की मांग है वर्ना अल्लामा ईकबाल साहब ने जो आजसे नब्वे साल पहले जो बात कही थी वो याद कीजिए "न संभलोगे तो मिट जाओगे ए हिंद के मुसलमानो दास्ता तक न रहेगी तुम्हारी दास्तानो में" उपरोक्त विषय पर विस्तार से विचार विमस कीजिए और युवा पीढी निस्वार्थ भाव से सामाजिक व्यवस्था को मजबूती प्रदान करने के लिए आगे बढे ताकी स्वार्थी लालची एवम मक्कारी वाली लिडर सीप पर कुछ हद तक प्रेसर बने मौजूद हालात को देखते हुए हर जगह समुदयकी लिडर सिप की एक ही थियरी है "टके सेर भाजी टके सेर खाजा" ज्यादा तर बेईमान एवम मक्कार लीडरशिप ने अपनी मनमानी करते हुए जो नुकशान समुदाय को एवम इस्लाम को पहोचाया है उसकी मिसाल देना भी मुश्किल काम है.
आज बडे अफसोस के साथ कहना पड रहा है की आज हम वो सउर खो चुके हैं जो हमारे अगलोमें था परशो के दिन ईदुल अजहा है उस दिन भी हमारा मकसद तो सिर्फ यही रहेगा की जानवर की गर्दन पर छुरी चलाना यानी कुर्बानी करना बस क्या इससे हमारा रब राजी हो जाएगा क्या यहदिन सिर्फ हलाल जानवरो की गर्दन पर छुरी चलाने लिए ही मुकर्रर किया गया है सायद मेरी बात से चुभन भी मैसूस हो सकती है माफ करना ख्वाहिशो को कुर्बान करना भी कुर्बानी है हम कब तक सिर्फ और सिर्फ अपने जिस्म को मजबूत बनाने के चक्करमे रूह को कमजोर करनेवाले बन कर रहेगे क्या ? अब मौजूदा हालात को देखते हुए इस्लामकी बुनियादी बातों पर अमल करते हुए हमें अपनी बीमार रूहों का ईलाज करने की जरूरत नहीं है....!!