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Tuesday, 5 May 2020

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*बेटी बचाने का सुनहरा मौका:* 
इस्लाम के कट्टर दुश्मन यहूदीओं की बरसों से कौशिश रही है की मुसलमानों को बरबाद करने के लिये उन्हें उनके मज़हबी लीडरों प्रति इतना अँधा करदो की मजहबी लीडर मुसलमान को रस भरे आम की तरह चूस ले और इतना गुमराह करदे की मुसलमान अपने बेटी-बेटियों के कैरियर की तरफ ध्यान देने की बजाय धर्म और फिरकों में इतना उलज जाये की उनकी बहन बेटियों की अजमत से खिलोने से भी कम किमंत पर हर कौम खिलवाड़ कर शके.
हम लोग बरसों से मद्रसों और यतीमखानों को ज़कात और मस्जिदों को लिल्लाह इमदाद इतना दिल खोल कर करते आये है और उसकी बदौलत पिछले 7-8 सालों में हम हम ऑलरेडी 1 लाख से ज्यादा मुफ़्ती, 1.5 लाख से ज्यादा कुर्रान हाफिज और आलिम तैयार कर चुके हैं , हर मोहल्ले और गली में नयी और भव्य मस्जिदें भी तामीर कर चुकें है, दूसरी तरफ पिछले 7-8 सालों में Ias, Ips, Magistrate, Engineer, Collector Doctor, Professor, Accountant बने मुसलमान की संख्या 100 तक भी नहीं पहुँच पाई है.
पिछले तीन वर्ष में 1250 से अधिक मुसलमान बहन- बेटियों ने महंगाई, बेरोजगार और गरीबी की वजह से इस्लाम धर्म छोड़कर गैरमुस्लिम (काफ़िर) से शादी की है.और सन 2002 के कलंकित दंगों के बाद से कई मुस्लिम महिलायें गलत कारोबार कर के अपना जीवननिर्वाह कर रही है. अभी माहौल ऐसा है की अच्छे घर की बुरखे वाली महिला पॉश एरिया में दिखाई दे तो भी दिमाग में हज़ार तरह के वसवसे आ जातें है. 24 मार्च से चल रहे लोकडाउन के तहत और धारा 144 के अमलवारी के चलते अभी भी ह्ज्जारों मुसलमानों के पास दो वक्त का खाना नहीं है, रोजमर्रा की ज़रूरत के सामान के लिये पैसा नहीं है, अभी यह कोरोना की बिमारी कहा तक चलेगी और लोकड़ाउन कब तक बढ़ता रहेगा उसकी कोई गारंटी नहीं है मुसलमानों का सबसे पाक और बा-बरकत महिना माहे रमजान शुरू हो गया है लोगों को सहेरी और इफ्तारी के भी लाले पड़े हुवे हैं लोकड़ाउन से अबतक कई खिदमतगार बंदों ने अपने से जो कुछ भी बना वो सब्जी, अनाज और राशन की किट बनाकर ऐसे स्लम एरिया में पहुंचाई, कुछ खिदमत गुजार लोगों ने खाना बनवाकर तकलीफ जदा लोगों में तकसीम करवाया लेकिन अब मस्ला रमजान का है. देश के आजाद होने से आजदीन तक मुसलमानों ने अपने सियासी लीडरों की, समाजी लीडरों की और मज़हबी लीडरों की हर अपील और बात को सर आँखों पर चढ़ाकर माना है. अब इस साल सभी पेश इमामों, दारुल उलूम के मालिक और ट्रस्टीगण, यतीमखानों के संचालक और रमजान में लाखो-करोडो रूपये ज़कात इकठ्ठा करने वाले तमाम संस्थान, संगठन और NGO से हाथ जोड़कर दर्द मंदाना अपील-गुज़ारिश और अनुरोध है अल्लाह और उसके हबीब (स.अ.व्.) का वास्ता है की इस साल अपने इदारे, तंजीमे, मद्रसे, दारुल उलूम, यतीमखाने तथा हर तरह के संस्थान के लिये ज़कात की अपील और चंदा न करें और बराये महेरबानी जो रोज कमाकर रोज खाने वाले ह्ज्जारो लोग अभी लोकड़ाउन की वज़ह से भूख से पीड़ित है सेहरी और इफ्तारी का मामूली भी प्रबंध नहीं कर शकते वैसे लोगो को इस साल रोज़े चैन-शुकून और इत्मिनान से रख लेने दीजिये और अपनी बहन-बेटियों को पैसों के लिये गैरमुस्लिम से गैर-मज़हब में शादी करने पे मजबूर होने से बचा लीजिये जो मुसलमान औरतें माली हालात खराब होने की वज़ह से जीवन निर्वाह के लिये गलत कारोबार-गुमराही की तरफ धकेलाई जा रही है उन्हें और आने वाली हमारी नस्लों को बरबादी से बचा लीजिये. यह मेसेज किसी खास तंजीम को फायदा पहोंचाने या किसी का भी नुकशान करने के लिये तैयार नहीं किया गया इसलिये बदले की भावना से कोई जवाबी मेसेज न फेलायें तो बहेतर रहेगा. और मुसलमान भाइयों अगर आप लोगों को इस मेसेज में कोई वजूद और सच्चाई नज़र आती हो तो जितना हो शके उतना गरीब मुस्लिम इलाकों में अभी घर बैठे रोजदारों को अपनी ज़कात और लिल्लाह रकम पहोंचाये और अपने दिल को पूरशुकून का एहसास करायें. अगर आप के दिल में खौफ ए खुदा है तो यह मैसेज पुरे हिंदुस्तान में वाइरल करते रहिये.
-शुक्रिया   

7/11 मुंबई विस्फोट: यदि सभी 12 निर्दोष थे, तो दोषी कौन ❓

सैयद नदीम द्वारा . 11 जुलाई, 2006 को, सिर्फ़ 11 भयावह मिनटों में, मुंबई तहस-नहस हो गई। शाम 6:24 से 6:36 बजे के बीच लोकल ट्रेनों ...